देशभर में कोरोना का असर निरंतर कम,लेकिन विज्ञान के आईने में कोरोना की चौथी लहर को लेकर बेहद भ्रामक सूचनाएं 

कोविड मामलों में उल्लेखनीय गिरावट दिखने के बावजूद चीन, ब्रिटेन, हांगकांग और दक्षिण कोरिया जैसे दुनिया के कुछ देशों में ओमिक्रोन के सब वेरिएंट बीए-2 का संक्रमण जिस तरह बढ़ा है, उससे अपने यहां भी चिंता बढ़ी है। हालांकि देशभर में कोरोना का असर निरंतर कम होता जा रहा है, लेकिन सतर्कता जारी रखनी होगी, क्योंकि इसके गणित माडल से भविष्यवाणी करने वालों का कहना है कि कोरोना की चौथी लहर कभी भी आ सकती है?
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मीडिया के एक हिस्से ने भी ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी के हवाले से ओमिक्रोन के सब वेरिएंट के हाइब्रिड स्ट्रेन से बने नए वेरिएंट एक्सई का खौफ इस तरह फैलाया है कि लोग भयग्रस्त हैं। लोगों की चिंता में विश्व स्वास्थ्य संगठन की आशंकाएं, चीन के कई बड़े शहरों की पाबंदियों आदि का भी योगदान है। कुछ स्रोत कहते हैं कि लहर अवश्य आएगी, पर जानलेवा नहीं होगी। उधर सरकारें और समाज का एक वर्ग यह बात स्थापित करने पर उतारू है कि कोरोना महामारी खत्म हो गई है, अब कोई लहर नहीं आने वाली।
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लेकिन दुविधा वाली बात यह है कि चौथी लहर के बारे में विभिन्न स्रोतों से मिलने वाली सूचनाएं तीसरी लहर से पहले आने वाली सूचनाओं जैसी ही विरोधाभाषी हैं। इस कारण भी इनसे भ्रम पैदा हो रहा है। इस मामले में विज्ञान और गणित तक में विभेद है। आइआइटी कानपुर के प्रोफेसरों का गणितीय माडल कहता है कि देश में कोरोना की चौथी लहर अवश्य आएगी। दो महीने बाद जून में इसका असर दिख सकता है, तीन महीने बाद पीक आएगा तथा सितंबर अंत तक यह तेजी से सिमट जाएगी। दूसरी तरफ देश के कई विषाणु विज्ञानी यह दावा कर चुके हैं कि चौथी लहर की कोई आशंका नहीं है। उनका कहना है कि लहर उसे कहते हैं जब संक्रमण दर तेजी से ऊपर चढ़े और फिर नीचे उतरे। अगर जून-जुलाई तक संक्रमण के मामले कुछ बढ़े भी तो वे इतने नहीं होंगे कि लहर का निर्माण करें। साथ ही, संक्रमित करने वाला विषाणु भी इतना कमजोर होगा कि इसका असर तीसरी लहर की तुलना में 10 प्रतिशत जितना भी नहीं होगा। वायरोलाजिस्ट और सीएमसी वेल्लोर के पूर्व प्रोफेसर डा. टी जैकब जान कहते हैं कि कोविड की चौथी लहर की भविष्यवाणी करने के लिए कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है। सभी विषाणु विज्ञानी और चिकित्सक एकमत हों ऐसा भी नहीं है। राजधानी दिल्ली के एक वरिष्ठ महामारी विज्ञानी का विचार है कि वायरस में हजार से अधिक उत्परिवर्तन हो चुके हैं और आगे भी होंगे। यह तय है कि यह म्यूटेशन चौथी लहर का कारण बनेगा, एक और विशेषज्ञ डा. चंद्रकांत लहरिया के अनुसार ओमिक्रान का नया वेरिएंट कोरोना की चौथी लहर लाएगा अवश्य।
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कुछ का कहना है कि इतनी आश्वस्ति से कुछ कहना कठिन है। हमें कुछ और समय इंतजार करना चाहिए, आंकड़े बताएंगे कि नया वेरिएंट लहर पैदा कर पाने में सक्षम है कि नहीं, क्योंकि दस गुना संक्रामक होने के बावजूद नए वेरिएंट के मामले बहुत ज्यादा सामने नहीं आ रहे। वैसे घातक और बड़ी कोरोना लहर की आशंका कम है, पर उधर टीवी माध्यम सनसनी फैला रहा है कि चीन और दक्षिण कोरिया में कोरोना संक्रमण के नए मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ये हालात कल भारत के भी हो सकते हैं। टीवी पर तर्कातीत होने के आरोप लगते रहते हैं, परंतु तर्क सम्मत बात कहने वाले विज्ञान और गणित ही जब विरोधाभासी दावे कर रहे हों तो राजनीतिक और अधिकारियों के बयानों के बारे में कहना ही क्या। इस संदर्भ में सर्वाधिक प्रचलित तर्क है, देश के 95 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लग चुकी है। जल्द ही दूसरी डोज वाले भी 80 प्रतिशत के पार होंगे। साथ ही, 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को पूरक डोज भी लग ही रहे हैं। आधी से अधिक जनसंख्या को जाने अनजाने परोक्ष रूप से कोरोना संक्रमण हो चुका है, इन सबकी प्रतिरोधक क्षमता बहुत मजबूत है। हर्ड इम्युनिटी की यह आदर्श स्थिति है। माना कि बीए-2 वैक्सीन से बच निकलता है, इसके बावजूद भारत में इसका संक्रमण बहुत घातक नहीं होगा। सवाल यह है कि जब वैक्सीन की प्रतिरोधक क्षमता संबंधी प्रभाविकता के बारे में यह पक्का पता ही नहीं कि इसका असर साल भर टिकता है कि नहीं तो यह बात पुख्ता तौर पर कैसे कही जा सकती है। पहली और दूसरी डोज लगवाने के बावजूद लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ। वैक्सीन लगवाने के बाद संक्रमण संभव है, पर यह जानलेवा नहीं होगा, ऐसा कहने के बावजूद जानें गईं। ऐसे में यह तो तय है कि जून तक बहुतों की वैक्सीन जनित सुरक्षा खत्म हो चुकी होगी। संक्रमण से पैदा हुई इम्युनिटी व्यक्ति आधारित है, यह कितनी मजबूत होगी यह भी आंकना जटिल है, क्योंकि यह व्यक्तिगत स्तर पर कोरोना के संक्रमण की गंभीरता, जटिलता, वायरस लोड आदि पर निर्भर है। बूस्टर डोज के प्रति सरकार बहुत उत्साही नहीं दिखती, यह सबको नहीं लग रही और जिनके लिए यह प्रस्तावित है उनकी भी संख्या पूरी नहीं हुई है। इस तरह देखें तो एक बड़ी आबादी समय बीतने के साथ असुरक्षित होगी। कोरोना की लहरों के प्रबंधन के बारे में लोग बहुत कुछ जान समझ चुके हैं। भले ही आशंकित चौथी लहर बहुत कमजोर रहे, पर उचित होगा कि सुविचारित उपाय तथा सतर्कता सतत जारी रहे। 180 करोड़ से अधिक रिकार्ड टीकाकरण कवरेज वाले देश में फिर से कोरोना का खौफ अगर सता रहा है तो वह इसलिए भी कि भारत में कोरोना के एंटीबाडी का स्तर समय के साथ घटता जाता है, लेकिन हाइब्रिड इम्युनिटी सुरक्षा प्रदान करती रहती है, इसलिए वैक्सीन की कमी की आड़ न लेते हुए 60 से नीचे वालों को भी, यदि वे खतरनाक बीमारियों से ग्रस्त हों, फ्रंटलाइन वर्कर हों अथवा नहीं, उन सभी को वैक्सीन का पूरक डोज मिलना चाहिए। लापरवाही बरती तो कमजोर प्रतिरोधी क्षमता वाले बुजुर्गों के जरिये चौथी लहर आ सकती है। टीकाकरण की रफ्तार धीमी हो चुकी है और जीनोम सैंपलिंग, सीक्वेंसिंग का काम बेहद सुस्त है। ऐसे में जीनोम सीक्वेंसिंग में घटती तत्परता घातक हो सकती है। प्रशासनिक पाबंदियां कम होने से जनता ने कोरोना प्रोटोकाल को ताक पर रख दिया है। ऐसे में हमें यह समझना होगा कि लहर खत्म हुई है, कोरोना निर्मूल नहीं हुआ है। पाबंदियां हटाने के बाद अब सरकार को जागरूकता बढ़ाने के साथ ही भ्रम दूर करने वाला विज्ञान सम्मत अभियान चलाकर जनता को वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहिए।
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