Chaitra Navratri 2022 : देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में महादेव का वास है। शिव शंकर के साथ ही यहां के पर्वत शिखरों और नदी तटों पर मां दुर्गा भी अलग-अलग स्वरूपों में विराजती हैं। देवी के इन मंदिरों को सिद्धपीठों (sidh peeth of uttarakhand) के रूप में भी जाना जाता है। क्योंकि यहां मांगी जाने वाली भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। चैत्र नवरात्र के अवसर पर चलिए ऐसे सिद्धपीठों के बारे में जानते हैं। (shakti peeth of uttarakhand)
मनसा देवी, हरिद्वार (Mansa Devi)
मान्यताओं के अनुसार मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री और नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है। मां मनसा का सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठ हरिद्वार में है। जिस वक्त महिषासुर ने धरती पर आतंक मचाया तो देवताओं ने मां मनसा का अह्वान किया। जिसके बाद मां ने महिषासुर का वध किया। वध करने के बाद हरिद्वार में मां मनसा ने विश्राम किया और तभी से यहां माता का प्रसिद्ध मंदिर है। उस वक्त मां मनसा देवताओं की इच्छा पूरी करती थी और कलयुग में मां मनसा उसके दरबार आने वाले सभी लोगों की इच्छा पूरी करती हैं।
पूर्णागिरि, टनकपुर (Purnagiri)
मान्यता है कि एक बार राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था। जिसके बाद सती ने पति शिव को न बुलाए जाने से क्षुब्ध होकर यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपनी जान दे दी। भगवान शिव पार्वती के पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे तो अन्नपूर्णा चोटी पर जहां उनकी नाभि गिरी उस स्थल को पूर्णागिरि शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली। दूसरी मान्यता है कि संवत 1621 में गुजरात के श्री चंद तिवारी यमनों के अत्याचार के बाद जब चम्पावत के चंद राजा ज्ञान चंद के शरण में आए तो उन्हें एक रात सपने मे मां पूर्णागिरि नाभि स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश दिया और 1632 में यहां धाम की स्थापना कर पूजा अर्चना शुरू हुई। यहां वर्ष भर श्रद्धालु शीश नवाते हैं।
दूनागिरि, द्वाराहाट (Dunagiri)
वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट से 15 किमी दूर दूनागिरि में दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ है । दूनागिरी माता का मंदिर और आस्था और श्रधा का केंद्र है ।मंदिर निर्माण के बारे में यह कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनात के द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुशेन वैद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था। हनुमान जी उस स्थान से पूरा पर्वत उठा रहे थे तो वहां पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर बन गया। कत्यूरी शासक सुधारदेव ने 1318 ईसवी में मंदिर निर्माण कर दुर्गा मूर्ति स्थापित की।मंदिर में शिव व पार्वती की मूर्तियाँ विराजमान है।
बाल सुंदरी मंदिर, काशीपुर (Bal Sundari)
काशीपुर में उज्जैनी शक्ति पीठ के नाम से प्रसिद्ध भगवती बाल सुंदरी का मंदिर शक्तिपीठ भी माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण औरंगजेब के सहयोग से किया गया था। मंदिर से जुड़े पंडित बताते हैं कि आैरंगजेब की बहन की तबीयत खराब हुई तो मां बाल सुंदरी ने सपने में दर्शन दिए। जिसके बाद मंत्रीपरिषद के लोगों ने काशीपुर स्थित मठ से मन्नत मांगने की सलाह दी। मां बाला सुंदरी के दर पर यह मन्नत पूरी हुई। जिसके बाद औरंगजेब ने मंदिर का निर्माण कराया।
नैना देवी, नैनीताल (Naina Devi)
नैनीताल झील किनारे स्थित नैनादेवी का मंदिर भक्तों के आकर्षण का केंद्र है। 1880 के भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था, जिसे दोबारा बनवाया गया है। प्रचलित मान्यता के अनुसार मां के नयनों से गिरे आंसू ने ही ताल का रूप धारण कर लिया और इसी वजह से इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। मंदिर के अंदर नैना देवी के साथ गणेश जी और मां काली की भी मूर्तियां हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
कसार देवी अल्मोड़ा (Kasar Devi)
अल्मोडा जिले में मां कसार देवी की शक्तियों का एहसास इस स्थान के कड़-कड़ में होता है। मंदिर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर एक गुफानुमा जगह पर बना है। कसार देवी मंदिर में माँ दुर्गा साक्षात प्रकट हुयी थीं | मंदिर में मां दुर्गा के आठ रूपों में से एक रूप देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। मंदिर के आसपास चुंबकीय शक्तियां हैं, जिस पर वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं।
चंडी देवी, हरिद्वार (Chandi Devi Haridwar)
देश में मौजूद 52 पीठों में से एक धर्मनगरी हरिद्वार में नील पर्वत पर स्थित मां चंडी देवी मंदिर में मां खंभ के रूप में विराजमान हैं। जब शुंभ, निशुंभ और महिसासुर ने धरती पर प्रलय मचाया था तब देवताओं ने भगवान भोलेनाथ के दरबार में दोनों के संहार के लिए गुहार लगाई। तब भोलेनाथ व देवताओं के तेज से मां चंडी ने अवतार लिया। शुंभ, निशुंभ इस नील पर्वत पर मां चंडी से बच कर छिपे हुए थे, तभी मां ने यहां पर खंभ रूप में प्रकट होकर दोनों का वध कर दिया। तब से मां इसी स्थान पर विराजमान हैं।
सुरकंडा देवी, कद्दूखाल, टिहरी (Surkanda Devi)
मान्यता है कि कनखल में यज्ञ का आयोजन किया गया था। जिसमें हिमायल के राजा दक्ष ने अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। यह बात भगवान शिव की पत्नी और दक्ष की बेटी शती सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ में कूदकर अपनी जान दे दीं। जिसके बाद भगवान ने उनके शरीर को लेकर पूरी पृथ्वी पर घूमे और जहां-जहां शरीर के अंग गिरे वह जगह शक्तिपीठ कहलायी। जहां देवी का सिर गिरा वह स्थान सुरकंडा देवी के नाम से जाना गया।
शीतला माता मंदिर, रानीबाग (Sheetla Mata)
शीतला माता का मंदिर हल्द्वानी से करीब सात किलोमीटर दूर नैनीताल रोड पर काठगोदाम में है। मान्यता है कि बनारस से कुछ पंडित शीतला माता की मूर्ति लेकर भीमताल अपने गाँव में स्थापित करने के लिए ला रहे थे। रानीबाग में उन्होंने विश्राम करने किया। इस दौरा एक व्यक्ति का स्वप्न आया कि मंदिर को स्थापित कर दिया जाए। सुबह उसने सपने वाली बात बताई तो बाकी लोगों ने उसकी बात का भरोसा नहीं किया। जब मूर्ति ले जाने के लिए उठाने लगे तो हिला तक नहीं सके। जिसके बाद सपने का भरोसा कर काठगोदाम में मूर्ति को स्थापित कर दिया।