सरकार द्वारा किए खर्चों को लेकर नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने फिर खड़े किए ये सवाल

नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) के बार-बार सवाल उठाने के बावजूद उत्तराखंड की सरकारें वित्तीय नियंत्रण में सुधार नहीं कर पा रही हैं। कैग की रिपोर्ट के अनुसार बीते 15 साल में राज्य में रही सरकारों ने करीब 43 हजार करोड़ रुपये विधानसभा की मंजूरी के बिना ही खर्च कर दिए। कैग ने इस पर गंभीर चिंता जताते हुए इसे संविधान का उल्लंघन बताया है। राज्य सरकार को यदि वेतन, पेंशन या अन्य मदों पर पैसा खर्च करना होता है तो उसके लिए पहले बजट या फिर लेखानुदान में प्रावधान किया जाता है। इसके विपरती सरकारें मनमानी करती आ रही हैं। शुक्रवार को सदन के पटल पर रखी गई कैग की वित्त पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि बजट से इतर अब तक जो खर्च हुआ है, उसे विधानसभा से विनियमित नहीं किया गया और न ही सरकारों ने अधिक खर्च होने की वजह बताई है। कैग ने पिछले 15 वर्षों का हवाला देते हुए कहा कि हर साल यह परंपरा निभाई जा रही है। साथ ही यह राशि लगातार बढ़ रही है। कैग ने इसे संविधान के अनुच्छेद 204 और 205 का उल्लंघन बताया। राज्य विधायिका के कानून में स्पष्ट है कि विनियोग(बजट)के सिवाय समेकित निधि से कोई धनराशि आहरित नहीं की जाएगी। कैग ने इसे बजटीय और वित्तीय नियंत्रण की प्रणाली को तहस-नहस करने वाला बताया। कैग ने कहा, ऐसी परंपरा सार्वजनिक संसाधनों के प्रबंधन में वित्तीय अनुशासनहीनता को भी प्रोत्साहित करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड के बजट मैनुअल के अनुच्छेद 121 में इसे लेकर व्यवस्था है। अनुच्छेद 121 में उल्लेख है कि यदि वित्त वर्ष के अंत में संज्ञान में आता है कि बजट के माध्यम से उस वर्ष के लिए किसी भी अनुदान के तहत अंतिम विनियोजन से अधिक खर्च हुआ है। तो उसे लोक लेखा समिति की अनुशंसा के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 205(1) (ब)के अंतर्गत विधानसभा में नियमित कराना चाहिए, पर सरकारों ने 2005-06 से 2019-20 तक 42,873.61 करोड़ रुपये बिना मंजूरी के खर्च किए और उसे नियमित तक नहीं कराया। अतिरिक्त खर्च के वर्षवार आंकड़े (राशि करोड़ रुपये में) वर्ष               राशि  2005-06     663.50 2006-07    935.92 2007-08    733.79 2008-09    1146.41 2009-10     1007.49 2010-11       1295.40 2011-12       1611.40 2012-13    1835.34 2013-14    1835.15 2014-15    1922.80 2015-16    2334.24 2016-17    5457.33 2017-18     6413.38 2018-19    8464.98 2019-20    7214.48 कुल      42,873.61
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